ज्योतिष शास्त्र में केमद्रुम योग
ज्योतिष शास्त्र में केमद्रुम योग*
ज्योतिष शास्त्र में केमद्रुम योग को काफी महत्व दिया गया है। जब जन्म पत्रिका में चन्द्रमा से द्वितीय और द्वादश भाव में कोई भी ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है। यदि चन्द्रमा के साथ राहु या केतु हो तो अत्यन्त कष्टकारी परिणाम होते हैं। केमद्रुम योग में चन्द्रमा की दशा आने पर परिस्थितियों विपरीत होने लगती है। सर्वसाधन सम्पन्न होने के बावजूद व्यक्ति अभाव ग्रस्त होने लगता है। ज्योतिष शास्त्र के अशुभ कारक ग्रह योगों में से यह एक योग है, इस योग वालो को निकट सम्बन्धियों से कष्ट एवं संघर्षमय जीवन बिताना पड़ता है। इनके जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आते हैं। मेने कई कुंडली में केमद्रुम भंग होते देखा है- यदि चन्द्रमा से गुरु केन्द्र में हो। चन्द्र उच्च या स्वगृही हो और चन्द्र पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो। चन्द्र और शुक्र केन्द्र में हों और गुरु की चन्द्र पर दृष्टि हो। चन्द्र से सप्तम में बुध, गुरु या शुक्र कोई भी हो। एकादश भाव का स्वामी केन्द्र में हो। एकादशेश की दृष्टि ग्यारहवें भाव पर हो तो केमद्रुम योग दोष में कमी आती है। अब केमद्रुम योग के फलों की बात की बात करते हैं। (ज्योतिषाचार्य सत्यम मिश्र जी) बताते है लग्न में चन्द्र होने पर जातक दुःखी, रोग युक्त व निर्धन होता है, परन्तु चन्द्र यदि स्वगृही या उच्च का हो तो दोषों में कमी आती है। द्वितीय भाव में चन्द्र होने पर जातक मानसिक रोगी, अशान्त, क्रोधी, असन्तुष्ट, नेत्रकष्ट तथा पारिवारिक क्लेश से परेशान रहता है। तृतीय भाव में चन्द्र होने पर भाई से कष्ट भाग्यावरोध, शत्रु से हानि व मानसिक अशान्ति मिलती है। चतुर्थ भाव में चन्द्र होने पर कुक्षि में पीड़ा, जल से भय, पारिवारिक कलह, मानसिक पीड़ा व जमीन जायदाद से सम्बन्धित परेशानियां प्राप्त होती हैं। * पंचम भाव में चन्द्र होने पर हर क्षेत्र में असफलता, धन की हानि, जोड़ों का दर्द, चोर भय, सन्तान को कष्ट, अशान्ति व गले में खराबी रहती है। * छठें भाव में चन्द्र होने पर रोग की वृद्धि, आय बाधित, शत्रु वृद्धि, मामा से कष्ट तथा अपमान जनक परिस्थितियां बनती हैं। सप्तम भाव में चन्द्र होने पर पत्नी व व्यापार से कष्ट, पत्नी का स्वास्थ्य बाधित, अकारण क्रोध व धन हानि का योग बनता है। * अष्टम भाव में चन्द्र होने पर कब्ज, पाचन तंत्र में कष्ट, विष भय, घुटने में दर्द, श्वांस कष्ट व मानसिक पीड़ा प्राप्त होती है। * नवम भाव में चन्द्र होने पर भाग्यावरोध, मानसिक पीड़ा, धार्मिक अनुष्ठानों से अल्प लाभ एवं असफलता का सामना करना पड़ता है। * दशम भाव में चन्द्र होने पर स्वास्थ्य बाधित, नौकरी में पदावनति एवं समस्त कार्यों में असफलता का सामना करना पड़ता है। * एकादश भाव में चन्द्र होने पर धन की हानि, आय के साधनों का अभाव एवं परिवर्तन, अस्थिरता
तथा समस्त क्षेत्रों में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। *
* द्वादश भाव में चन्द्र होने पर नेत्र पीड़ा, शारीरिक कष्ट, धन नाश, व्ययाधिक्य, संघर्षपूर्ण जीवन यापन, मानसिक खिन्नता और नाना प्रकार के दुःखों का सामना करना पड़ता है। केमद्रुम योग के उपाय केमद्रुक योग से ग्रस्त लोग प्रायः जिद्दी, सनकी, क्रोधी तथा चंचल होते हैं। अतः किसी भी एक विषय पर टिक कर चिन्तन नहीं कर पाते जिससे विफलता मिलती है। ज्योतिषाचार्य सत्यम मिश्र जी बताते है इस कुयोग की शान्ति कराना अति आवश्यक होता है। किसी अच्छे मुहूर्त में विद्वान आचार्य के आचार्यत्व में अनुष्ठान सम्पन्न कराएं। गुरु-चन्द्र यन्त्र एवं शुक्र चन्द्र यन्त्र धारण करना लाभदायक होता है। चन्द्रमा के वैदिक या आगमशास्त्रीय मंत्र का जप, चन्द्र से द्वितीय व द्वादश भावाधिपति ॐ के मन्त्र का जप, दशांश हवन, तर्पण, मार्जन व कुमारिका भोजन कराना चाहिए। माँ भगवती के किसी शक्तिपीठ में या प्रतिष्ठित मंदिर में, गंगातट पर अथवा ज्योतिर्लिंग या शिवमन्दिर में भी अनुष्ठान किया जा सकता है।
हर हर महादेव